Output Devices – ये वे उपकरण हैं जिनकी सहायता से डाटा को प्रोसेसिंग के पश्चात् परिणाम प्रदर्शित करने में या परिणाम को संग्रहित करने में किया जाता है। परिणाम को प्रदर्शित करने वाले आउटपुट उपकरण दो प्रकार के होते हैं-
- हार्ड कॉपी आउटपुट उपकरण
- सॉफ्ट कॉपी आउटपुट उपकरण
सॉफ्ट कॉपी (Soft Copy) आउटपुट उपकरण (Output Devices)
इस श्रेणी में वे आउटपुट उपकरण आते हैं जिनमें बिजली की सप्लाई बंद हो जाने पर प्रदर्शित परिणाम दिखाई नहीं देते जो अस्थायी तौर पर आउटपुट प्रदर्शित करते हैं अर्थात् । आमतौर पर प्रत्येक कम्प्यूटर के साथ प्रयुक्त इकाई मॉनीटर अर्थात् VDU इस श्रेणी में सर्वाधिक प्रचलित उपकरण हैं। प्रदर्शित किए जाने वाले टेक्स्ट, ग्राफिक्स तथा रंगों के आधार पर इन्हें कई प्रकारों में बांटा जा सकता है।
मॉनीटर (Monitor)
मॉनीटर टी.वी. जैसा ही एक यंत्र होता है जिस पर कम्प्यूटर से प्राप्त परिणाम को प्रदर्शित किया जाता है। मॉनीटर को सामान्यत उनके द्वारा प्रदर्शित रंगों के आधार पर तीन भागों में वर्गीकृत किया जाता है-
- मोनोक्रोम (Monochrome) – इस तरह के मॉनीटर परिणाम के सिर्फ एक ही रंग में प्रदर्शित करने में समर्थ होते हैं। यह सामान्यत हरे या सफेद/काले रंग में उपलब्ध होते हैं। यह शब्द दो शब्दों मोनो Mono) अर्थात् एकल (Single) तथा क्रोम (Chrome) अर्थात रंग (Color) से मिलकर बना है। इस प्रकार के मॉनीटर आउटपुट को श्वेत-श्याम (Black & White) रूप में प्रदर्शित करते हैं।
- ग्रे-स्केल (Gray-Scale) – इस तरह के मॉनीटर विभिन्न ग्रे शेड्स (Gray-Shades) में आउटपुट प्रदर्शित करते हैं। इस प्रकार के मॉनीटर अधिकतर डेस्क टॉप में प्रयुक्त किये जाते हैं।
- रंगीन मॉनीटर (Color Monitors) – यह मॉनीटर रंगीन आउटपुट प्रदर्शित करता है। यह तीन रंगों लाल, हरे तथा नीले रंगों के समायोजन के रूप में आउटपुट को प्रदर्शित करता है । त्रिरंगीय सिद्धांत के कारण ऐसे मॉनीटर उच्च रेजोलूशन (Resoutio) में ग्राफिक्स को प्रदर्शित करने में सक्षम होते हैं। कम्प्यूटर मेमोरी की क्षमतानुसार ऐसे मॉनीटर 16 से लेकर 16 लाख तक के रंगों में आउटपुट प्रदर्शित करने की क्षमता रखते हैं।
वर्ष 2010 से पूर्व अधिकांश कम्प्यूटर के मॉनीटर पुराने समय के टीवी सेट के समान ही सी.आर.टी. मॉनीटर (CRT Monitor) होते हैं। इनमें कैथोड किरण आधारित पिक्चर ट्यूब का प्रयोग किया जाता था। यह ट्यूब सी. आर. टी. (Cathode Ray Tube) कहलाती है। सी.आर.टी. तकनीक सस्ती और उत्तम रंगीन आउटपुट देने में सक्षम है। सी.आर.टी. तकनीक में नीचे चित्र में दिखाए अनुसार एक इलेक्ट्रॉन गन प्रयुक्त की जाती है जो इलेक्ट्रॉन पैदा करती है और नली की सतह पर आंतरिक फास्फोरस का लेपन (Coating) होता है जो उच्च गति के इलेक्ट्रॉन के टकराव से प्रकाश उत्सर्जित करता है। प्रत्येक पिक्सेल (Pixel) इलेक्ट्रॉन के एक पुंज (Beam) से चमकता है।
सी.आर.टी. के भाग –
- इल्क्ट्रॉन गन
- रिफ्लेक्टर
- इलेक्ट्रॉन बीम
- फास्फोरस लेप युक्त सतह
- पिक्सल
पर्सनल कम्प्यूटर की वीडियो तकनीक में दिन प्रतिदिन सुधार आता जा रहा है। वीडियो स्टैण्डर्ड के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं :
- कलर ग्राफिक्स अडैप्टर (Colour Graphics Adapter)
- इन्हैन्स्ड ग्राफिक्स अडैप्टर (Enhanced Graphics Adapter)
- वीडियो ग्राफिक्स ऐरे (Video Graphics Array)
- इक्स्टेण्डेड ग्राफिक्स ऐरे (Extended Graphics Array)
- सुपर वीडियो ग्राफिक्स ऐरे (Super Video Graph Array)
अत्याधुनिक कम्प्यूटर में सी। आर टी | तकनीक के स्थान पर मॉनीटर और डिस्प्ले डिवाइसेज की नई तकनीक विकसित की गई है जिनमें आवेशित रसायनों और गैसों को काँच की प्लेटों के मध्य संयोजित किया जाता है। ये पतली डिस्प्ले डिवाइसेज फ्लैट पैनल डिस्प्ले (Flat-Panel display ) कहलाती है तथा इन मॉनीटर को फ्लैट पैनल मॉनीटर (Flat Panel Monitor) कहा जाता है। ये डिवाइसेज वजन में हल्की और विद्युत की कम खपत करने वाली होती हैं। ये डिवइसेज लैप-टॉप (Laptop) कम्प्यूटरों में लगाई जाती हैं।
कई कम्प्यूटर मॉनीटर फ्लैट – पैनल डिस्प्ले होते है जिसमें द्रवीय क्रिस्टल डिस्प्ले ( Liquid Crystal Display – LCD) तकनीक प्रयुक्त होती है। एल. सी. डी. में सीआरटी तकनीक की तुलना में रेज्यॉलूशन (Resolution) कम होता है जिससे आउटपुट स्पष्ट नहीं आता है। दो अन्य फ्लैट-पैनल में एल.तकनीकें भी इसके लिए प्रस्युक्त की जाती हैं। गैस प्लाज्मा डिस्प्ले (Gas Plasma Display – GPD) और इलेक्ट्रोल्यूमिनेसेन्ट डिस्प्ले (Electroluminescent Display – EL) हैं। इन दोनों तकनीकों . सी. डी. की तुलना में रेज्यॉलूशन अधिक अच्छा होता है, लेकिन अभी यह तकनीक महँगी है।
वर्तमान समय में प्रयुक्त किए जाने वाले अधिकांश कम्प्यूटर मॉनीटर एक नवीनतम तकनीक जिसे एलसीडी तकनीक कहते है पर आधारित होते हैं। LCD भी मॉनिटर का ही एक प्रकार है, लेकिन ये साधारण मॉनिटर से बहुत पतले होते है, साथ ही ये उनसे कम बिजली पर काम करते है और इनमे सीआरटी मॉनिटर से ज्यादा अच्छी स्क्रीन दिखाने की क्षमता होती है. पतले और हलके होने की वजह से ये कम जगह घेरते है और आप इन्हें अपने घर या ऑफिस की दीवार पर भी आसानी से लगवा सकते हो. LCD में दो शीशे की परत होती है जो एक दुसरे से भिन्न होती है लेकिन एक दुसरे के साथ चिपकी होती है. इन्ही में से एक पर Liquid Crystal की परत होती है, और जब इनमे बिजली आती है तो यही Liquid Crystal रोशनी को रोकते और छोड़ते है ताकि इमेज / स्क्रीन दिख सके. इन Crystal के पास अपनी खुद की कोई रोशनी नही होती है. LCD अपनी बेकलाइट रोशनी के लिए फ्लौरेस्सेंट (Fluorescent ) लैंप का इस्तेमाल करती है. कई LCD ड्यूल स्कैनिंग होती है, जिसका मतलब है कि ये अपनी स्क्रीन को दो बार स्कैन कर सकते है.
एलईडी (LED) एक सेमी कंडक्टर डिवाइस होता है जो विद्युत करंट मिलने पर लाइट पास करता है और डिस्प्ले दिखता है. इसकी रोशनी ज्यादा चमकीली नही होती और इसकी तरंग की दूरी भी एक ही होती है. ये अपनी पार्श्व रोशनी (बेकलाइट) के लिए डायोड का इस्तेमाल करता है. इसके रंगों का प्रकार भी बाकी डिस्प्ले यंत्रों से ज्यादा साफ़ होता है. इनकी कीमत एलसीडी से ज्यादा होती है, साथ ही इन्हें एलसीडी का ही नया संस्करण माना जाता है. एलईडी को IRED ( Infrared Emitting Diode ) भी कहा जाता है क्योकि एलईडी से जो आउटपुट निकलता है उसकी रेंज लाल, हरी या नीली होती है. एलईडी में दो सेमी कंडक्टर होते है – पहला P प्रकार का सेमीकंडक्टर तथा यादा हल्का होता है, साथ ही ये दूसरा N प्रकार का सेमीकंडक्टर। इनका वजन भी एलसीडी से भी उनसे ज्यादा पतली होती है.
एलईडी तकनीक पर आधारित मॉनीटर के प्रयोग के निम्न लाभ हैं-
- कम बिजली की जरूरत – इन्हें अपने काम को करने के लिए बहुत कम विद्युत की जरूरत होती है।
- ज्यादा कार्यक्षमता – इनको जितनी विद्युत दी जाती है उसमें से ज्यादातर विद्युत को ये जरूरत के हिसाब से रेडिएशन में बदल लेते है, जिससे कम से कम गर्मी निकलती है और ये ज्यादा काम कर पाती है।
- ज्यादा जीवन – एलईडी को एक बार खरीदने के बाद कई दशकों तक इस्तेमाल किया जा सकता है।
- एलईडी का एक खास लाभ ये भी है कि इसकी स्क्रीन को अचानक गिरने के बाद भी ज्यादा हानि नही पहुँचती, सिर्फ कुछ लाइन आ जाती है, किन्तु आप उसके बाद भी आराम से इसका इस्तेमाल कर पाते हो. जबकि एलसीडी की स्क्रीन एक बार गिरने के बाद पूरी तरह खराब हो जाती है.
मॉनीटर के गुण (Charasteristics of Monitor)
प्रत्येक प्रकार के मॉनीटर के अंदर कुछ खास गुण होते है जिनके आधार पर इनकी गुणवत्ता को परखा जाता है मॉनीटर के मुख्य लक्षण रेजोल्यूशन (Resolution), रिफ्रेश दर (Refresh Rate), डॉट पिच (Dot Pitch), इंटरलेसिंग नॉन इंटरलेसिंग (Interlacing or non Interlacing), बिट मेपिंग (Bit Mapping) आदि है जिनके आधार पर तकनीकी शब्दों को समझाया गया है।
- रेजोल्यूशन (Resolution) गुणवत्ता को परखा जाता हैं। नीचे के पैराग्राफों में इन मॉनीटर का सबसे महत्वपूर्ण गुण होता है। यह स्क्रीन पर प्रदर्शित होने वाले चित्र की स्पष्टता (Sharpness) को बताता है। अधिकतर डिस्प्ले डिवाइसेज में चित्र स्क्रीन पर प्रदर्शित होने वाले छोटे छोटे डॉट (Dots) के चमकने से बनते है। स्क्रीन पर प्रदर्शित होने वाले ये छोटे छोटे डॉट पिक्सल (Pixels) कहलाते है। यहाँ पिक्सल (Pixels) शब्द पिक्चर एलीमेंट (Picture Element) का संक्षिप्त रूप है। स्क्रीन पर जितने अधिक पिक्सल होगें स्क्रीन का रेजोल्यूशन (Resolution) भी उतना ही अधिक होगा अर्थात चित्र (Image) उतना ही स्पष्ट होगा। पहले सामान्य डिस्प्ले रेजोल्यूशन 640 * 480 होता था तो इसका अर्थ है कि स्क्रीन पर चित्र 640 डॉट के स्तम्भ (Column) और 480 डॉट की पंक्तियों (Row) से बनी है। आजकल के मॉनीटर का सामान्य रिज्यालूशन 1024×768, 1280×768 या 1366×768 होता है।
- मीटर की रिफ्रेश दर (Refresh Rate) – मॉनीटर पर प्रदर्शित होने वाले पिक्सल लगातार बनते और मिटते रहते है। कम्प्यूटर स्क्रीन पर इमेज दायें से बायें एवं ऊपर से नीचे की ओर बनती और मिटती रहती है। जो पहले के सीआरटी मॉनीटर में इलेक्ट्रान गन से नियंत्रित होता रहता है। इसका अनुभव हम तभी कर पाते है जब स्क्रीन क्लिक करते है या जब मॉनीटर की रिफ्रेश दर कम होती है । मॉनीटर में रिफ्रेश रेट को हर्टज में नापा जाता है। मॉनीटर की रिफ्रेश दर यदि 60Hz है अर्थात 60 हर्टज है तो इसका अर्थ है कि मॉनीटर पर प्रदर्शित होने वाली इमेज एक सेकेण्ड में 60 बार रिफ्रेश होता है। उच्च रिफ्रेश दर का अर्थ होता है अधिक अच्छी तथा स्मूथ पिक्चर। आधुनिक एलसीडी या एलईडी मॉनीटर की रिफ्रेश दर 144 Hz or 240 Hz होती है इसलिए इन पर प्रदर्शित होने वाली पिक्चर की गुणवत्ता काफी अच्छी होती है।
- डॉट पिच (Dot Pitch) – डॉट पिच एक प्रकार की मापन तकनीकी है। जो यह प्रदर्शित करती है कि क्षैतिज स्तर पर (horizontal) दो पिक्सल के मध्य अन्तर या दूरी कितनी है। इसका मापन मिलीमीटर में किया जाता है। यह मॉनीटर की गुणवत्ता को प्रदर्शित करती है। मॉनीटर में डॉटपिच कम होना चाहिये। इसको फॉस्फर पिच भी कहा जाता है। सामान्य सीआरटी मॉनीटर डॉट पिच 0.51 एमएम होती है। अधिकांश कम्प्यूटर कलर मॉनीटर की डॉट पिच 0.25 mm से 28mm तक होती है। आजकल प्रयुक्त होने वाले एलसीडी मॉनीटर की डॉट पिच 0.20mm से 0.28mm होती है। कुछ उच्च गुणवत्ता वाले वैज्ञानिक तथा चिकित्सकीय मॉनीटर की डॉट पिच 0.15 तक होती है।
- इन्टरलेसिंग तथा नॉन-इन्टरलेसिंग (Interlacing or non Interlacing) – यह एक ऐसी डिस्प्ले तकनीकी है। जो की मॉनीटर में रेजोल्यूशन की गुणवत्ता में और अधिक वृद्वि करती है। पुराने इन्टरलेसिंग मॉनीटर में इलेक्ट्रान गन केवल आधी लाईन खीचती थी क्योंकि इन्टरलेसिंग मॉनीटर एक समय में केवल आधी लाइन को ही रिफ्रेश करता है। यह मॉनीटर प्रत्येक रिफ्रेश साइकिल में दो से अधिक लाइनों को प्रदर्शित कर सकता है। इसकी केवल यह कमी थी कि इसका प्रत्युत्तर समय (response time) अधिक होता था। दोनों प्रकार के मॉनीटर की रेजोल्यूशन क्षमता अच्छी होती है। परन्तु नॉन इन्टरलेसिंग मॉनीटर ज्यादा अच्छा होता है। वर्तमान में प्रयोग होने वाले अधिकांश मॉनीटर नॉन इन्टरलेसिंग मॉनीटर होते है।
- बिट मैपिंग (Bit Mapping) – पहले जो मॉनीटर का प्रयोग किया जाता था उनमें केवल टेक्स्ट को ही डिस्प्ले किया जा सकता था और इनकी पिक्सेल की संख्या सीमित होती थी। जिससे टेक्स का निर्माण किया जाता था । ग्राफिक्स विकसित करने के लिये जो तकनीकी प्रयोग की गई जिसमें टैक्स्ट और ग्राफिक्स दोनों को प्रदर्शित किया जा सकता हैं वह बिट मैपिंग कहलाती है। इस तकनीकी में बिट मैप ग्राफिक्स का प्रत्येक पिक्सेल ऑपरेटर के द्वारा नियन्त्रित होता है। इससे ऑपरेटर के द्वारा किसी भी आकृति को स्क्रीन पर बनाया जा सकता है।
वीडियो मानक या डिस्प्ले पद्धति (Video Standard or Display Modes)
वीडियो मानक से तात्पर्य मॉनीटर में लगाये जाने वाले तकनीक से है । पर्सनल कंप्यूटर की वीडियो तकनीक में दिन प्रतिदिन सुधार आता जा रहा है। इसमें मुख्य रुप से दो स्तरों पर अंतर होता है रंगों का प्रदर्शन तथा पिक्सल डिस्प्ले रिज्यालूशन्स । इन दोनों के आधार पर मॉनीटर में ग्राफिक्स प्रदर्शन की गुणवत्ता में परिवर्तन आता है। अब तक परिचित हुए मानकों में वीडियो स्टैंडर्ड के कुछ उदाहरण निम्नलिखित है
- मोनोक्रोम डिस्प्ले एडाप्टर (Monochrome Disply Adapter)
- कलर ग्राफिक्स अडैप्टर (Color graphics Adapter)
- इन्हैंन्स्ड ग्राफिक्स अडैप्टर (Enhanced Graphics Adapter)
- वीडियो ग्राफिक्स ऐरे (Video graphics Array)
- इक्स्टेण्डेड ग्राफिक्स ऐरे (Extended Graphics Array)
- सुपर वीडियो ग्राफिक्स ऐरे (Super Video graphics Arr :
इनके बारे में संक्षिप्त विवरण नीचे प्रदान किया जा रहा है –
- मोनोक्रोम डिस्प्ले एडाप्टर (Monochrome Disply Adapter ) – MDA (मोनोक्रोम डिस्प्ले एडेप्टर), जो 1981 में विकसित हुआ, मोनोक्रोम मॉनिटर का डिस्प्ले मोड था, जो कि 80 कॉलम और 25 पंक्तियों में टेक्स्ट प्रदर्शित कर सकता था। यह मोड केवल ASCII वर्ण के अक्षर स्क्रीन पर प्रदर्शित कर सकता है।
- कलर ग्राफिक्स अडैप्टर (Color graphics Adapter) – इसे मूल रूप से आई.बी.एम. ने 1981 में पेश किया था । इसे आईबीएम कलर / ग्राफिक्स मॉनिटर एडॉप्टर भी कहा जाता है। यह आईबीएम पीसी के लिए पहला ग्राफिक्स कार्ड और पहला कलर डिस्प्ले कार्ड था । इस कारण से, यह कंप्यूटर का पहला रंगीन कंप्यूटर डिस्प्ले मानक भी बन गया। मानक आईबीएम सीजीए ग्राफिक्स कार्ड 16 किलोबाइट वीडियो मेमोरी से सुसज्जित था और इसे 4-बिट डिजिटल “RGBI” इंटरफ़ेस का उपयोग करके समर्पित डायरेक्ट – ड्राइव CRT मॉनिटर से जोड़ा जा सकता था, जैसे IBM 5153 कलर डिस्प्ले, या एक NTSC के लिए एक आरसीए कनेक्टर के माध्यम से टेलीविजन या समग्र वीडियो मॉनिटर से जोड़ा जाता था।
- CGA के साथ, आपकी स्क्रीन अधिकतम रिज़ॉल्यूशन पर केवल एक रंग के साथ 640×200 डॉट्स में चित्र दिखा सकती है। यदि आप एक बार में स्क्रीन पर 4 रंग चाहते हैं, तो चित्र और भी अधिक अवरुद्ध दिखाई देंगे, क्योंकि इस समय यह अधिकतम 320×200 डॉट्स प्रदर्शित कर सकता है। यदि आप 16 रंगों में चित्र प्रदर्शित करना चाहते थे तो यह 160×200 डॉट्स के आधार पर चित्र प्रदर्शित कर सकता था।
- इन्हैंन्स्ड ग्राफिक्स अडैप्टर (Enhanced Graphics Adapter) – इसका निर्माण भी इंटरनेशल बिजनेस मशीन्स (आई.बी.एम.) ने 1984 में किया था। यह डिस्प्ले सिस्टम 16 अलग-अलग रंगों को प्रदर्शित कर सकता था। सकी प्रदर्शन क्षमता पूर्व में निर्मित सी. जी. ए. की अपेक्षा अधिक संख्या में क्षैतिज तथा उर्ध्वाधर रुप में पिक्सल प्रदर्शित करने की थी । यह 640 X 350 पिक्सल प्रदर्शित करने में सक्षम था। किन्तु फिर भी उच्च गुणवत्ता के ग्राफिकल उपयोग के लिए उपयोगी नहीं था ।
- वीडियो ग्राफिक्स अरे ( Video Graphics Array) या VGA पहले पहल आईबीएम ने 1987 में पीएस/2 कंप्यूटरों में प्रयोग किया था। इसमें मानक, 15 पिन डी – सबमिनिएचर वीजीए कनेक्टर प्रयुक्त होता है जो 640×480 रिजोल्यूशन में इमेज को प्रदर्शित कर पाता है। हालांकि अब यह रिजोल्यूशन पर्सनल कंप्यूटरों में प्रयोग नहीं किया जाता। VGA का स्थान आधिकारिक रूप से आईबीएम के एक्सजीए (XGA) मानक ने लिया था, लेकिन वास्तविकता में इसका स्थान, क्लोन निर्माताओं द्वारा विकसित उन विभिन्न परिष्कृत वीजीए ने लिया था, जिन्हें सामूहिक के रूप से “सुपर वीजीए ” नाम से जाना जाता है।
- सुपर वीडियो ग्राफिक्स ऐरे ( Super Video graphics Array) – मानक को अल्ट्रा वीडियो ग्रफिक्स ऐरे (Ultra Video Graphics Array) भी कहा जाता है। इसका विकास एनसी इलेक्ट्रॉनिक्स ने 1988 में किया था। यह चित्रों को 800×600 रिज्यालूशन में प्रदर्शित कर सकता है। अत वीजीए की तुलना में यह समान आकार की स्क्रीन पर 56 प्रतिशत स्पष्टता के साथ चित्र प्रदर्शित कर सकता है। 640×200, 640×350 और 640×480 के रिज्यालूशन्स पर यह 256 रंगों को प्रदर्शित कर सकता है। SVGA कम रंगों का उपयोग करके उच्च रिज्यालूशन्स जैसे 800×600 या 1024×768 को भी प्रदर्शित कर सकता है।
- एक्सटेन्डेड ग्राफिक्स ऐरे (Extended Graphics Array)- इसका निर्माण भी इंटरनेशनल बिजनेस मशीन्स ने 1990 में किया था इसमें 16 लाख रंगों में 800×600 पिक्सेल रिज्यालूशन्स तथा 65536 मिलियन रंगों में 1024×768 पिक्सेल्स का रिज्यालूशन्स प्रदर्शित करता था । यह उच्च गुणवत्ता की ग्राफिक्स स्कीन्स पर प्रदर्शित करने में सक्षम था तथा डीटीपी तथा चिकित्कीय ग्राफिक्स जैसे अनुप्रयोगों के लिए उपर्युक्त था।
- वीडियो इलेक्ट्रॉनिक स्टैंडर्ड एसोसिएशन (Video Electronic Standard Association) ग्राफिक्स मोड में मानकीकरण की कमी को पूरा करने के लिए, ग्राफिकल मानकों को विकसित करने के लिए प्रमुख ग्राफिक्स कार्ड निर्माताओं का एक संघ (VESA, वीडियो इलेक्ट्रॉनिक स्टैंडर्ड एसोसिएशन) बनाया गया था।
- सुपर एक्सटेन्डेड ग्राफिक्स एरे ( Super extended Graphics Array-SXGA) – वीईएसए कंसोर्टियम द्वारा परिभाषित एसएक्सजीए (सुपर एक्सटेन्डेड ग्राफिक्स एरे) मानक 16 मिलियन रंगों के साथ 1280×1024 के संकल्प को संदर्भित करता है। इस मोड की विशेषता अन्य मोड (VGA, SVGA, XGA, UXGA) के विपरीत 5:4 के स्क्रीन अनुपात से होती है।
- अल्ट्रा एक्सएक्सडेड ग्राफिक्स ऐरे (Ultra extended Graphics Array UXGA) UXGA मोड (अल्ट्रा एक्सएक्सडेड ग्राफिक्स ऐरे ) 16 मिलियन रंगों के साथ 1600 × 1200 के रिज़ॉल्यूशन में ग्राफिक्स प्रदर्शित करता है।
- वाइड एक्सटेन्डेड ग्राफिक्स एरे (Wide extended Graphics Array -WXGA)- डब्ल्यूएक्सजीए मोड (वाइड एक्सटेन्डेड ग्राफिक्स एरे ) 16 मिलियन रंगों के साथ 1280 x 800 के रिज़ॉल्यूशन में ग्राफिक्स प्रदर्शित करता है।
- वाइड एक्सटेन्डेड ग्राफिक्स ऐरे (Wide extended Graphics Array -WSXGA) WSXGA मोड (वाइड एक्सटेन्डेड ग्राफिक्स ऐरे ) 16 मिलियन रंगों के साथ 1600 × 1024 के रिज़ॉल्यूशन में ग्राफिक्स प्रदर्शित करता है।
- वाइड सुपर एक्सटेन्डेड ग्राफिक्स ऐरे (Wide Super extended Graphics Array+) – WSXGA + मोड (वाइड सुपर एक्सटेन्डेड ग्राफिक्स ऐरे + ) 16 मिलियन रंगों के साथ 1680 x 1050 रिज़ॉल्यूशन में ग्राफिक्स प्रदर्शित करता है।
- वाइड एक्सटेन्डेड ग्राफिक्स एरे (Wide extended Graphics Array – WUXGA) WUXGA मोड (वाइड एक्सटेन्डेड ग्राफिक्स एरे) 16 मिलियन रंगों के साथ 1920 x 1200 के रिज़ॉल्यूशन में ग्राफिक्स प्रदर्शित करता है।
- वाइड एक्सटेन्डेड ग्राफिक्स ऐरे (Wide extended Graphics Array – QXGA) – QXGA मोड (वाइड एक्सटेन्डेड ग्राफिक्स ऐरे ) 16 मिलियन रंगों के साथ 2048 x 1536 के रिज़ॉल्यूशन में ग्राफिक्स प्रदर्शित करता है।
- वाइड एक्सटेन्डेड ग्राफिक्स एरे (Wide extended Graphics Array -QSXGA) QSXGA मोड (वाइड एक्सटेन्डेड ग्राफिक्स एरे ) 16 मिलियन रंगों के साथ 2560x 2048 के रिज़ॉल्यूशन में ग्राफिक्स प्रदर्शित करता है।
- अल्ट्रा एक्सटेन्ड ग्राफिक्स एरे (Ultra extended Graphics Array QUXGA) QUXGA मोड (अल्ट्रा एक्सटेन्ड ग्राफिक्स एरे) 16 मिलियन रंगों के साथ 32000 × 2400 के रिज़ॉल्यूशन में ग्राफिक्स प्रदर्शित करता है।
इनमें से प्रमुख मानकों को नीचे सारणी में प्रदर्शित किया गया है
हार्ड कॉपी (Hard Copy) आउटपुट उपकरण (Output Devices)
इस प्रकार के उपकरण उपकरण होते हैं जो सामान्यत कागज पर प्रिंट स्वरूप में हमें स्थायी परिणाम प्रदर्शित करते हैं। इस प्रकार प्राप्त परिणाम का हम फिर कहीं भी उपयोग कर सकते हैं।
सामान्य रूप में प्रिंटर तथा प्लॉटर को इस प्रकार की श्रेणी में रखा जाता है।
प्रिंटर को तीन श्रेणियों में रखा जाता है- (i) कैरेक्टर प्रिंटर (ii) पेज प्रिंटर (iii) लाइन प्रिंटर प्रिंट तकनीक के आधार पर
- कैरेक्टर प्रिंटर – इस प्रकार के प्रिंटर एक बार में एक अक्षर प्रिंट करते हैं। सामान्यत उपयोग में लाए जाने वाले डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर डेजी व्हील तथा इंकजेट प्रिंटर इस श्रेणी के ही प्रिंटर हैं। इन प्रिंटर्स की गति कैरेक्टर प्रति सेकेण्ड्स (CPS) में मापी जाती है।
- लाइन प्रिंटर – इस प्रकार के प्रिंटर में सूचना की संपूर्ण पंक्ति एक बार में प्रिंट होती है। इनकी गति कैरेक्टर प्रिंटर की तुलना में अधिक होती है। इन प्रिंटर्स की गति लाइन प्रति मिनिट में मापी (LPM) में जाती है। इस प्रकार के प्रिंटर्स चेन तथा ड्रम प्रिंटर्स होते हैं।
- पेज प्रिंटर्स – इस प्रकार के प्रिंटर में संपूर्ण में लेजर तकनीक उपयोग में लाई जाती है।
प्रिंट तकनीक के आधार पर व्यापक रूप से प्रिंटर को दो श्रेणियों में रखा जाता है-
- इंपेक्ट प्रिंटर – इंपेक्ट प्रिंटर सामान्य रूप में टाइपराइटर की तरह कार्य करते हैं इन प्रिंटर में कागज पर दवाब बनाकर अक्षरों की छपाई की जाती है इनमें प्रिंट हैड कागज पर दवाब देता है तथा छपाई करता है इन प्रिंटर में चूंकि दवाब ( hammer) का प्रयोग होता है अत वे ज्यादा शोर करते हैं। किन्तु इस प्रकार के प्रिंटर्स में कार्बन का प्रयोग कर एक बार में एक से अधिक मूल प्रति प्रिंट की जाती है ।
- नॉन इंपेक्ट प्रिंटर्स – इस प्रकार के प्रिंटर्स में कागज पर कैरेक्टर प्रिंट करने हेतु दबाव नहीं दिया जाता। यहां पर हैड सीधे कागज के संपर्क में नहीं आता है अत ये प्रिंटर बिना शोर किए प्रिंट करते हैं। इस प्रकार कागज पर दवाब न पड़ने के कारण अत्यंत पतले कागज पर की अच्छी गुणवत्ता का प्रिंट लिया जा सकता है।
- डेजी व्हील (Daisy wheel) – यह ठोस मुद्रा – अक्षर (Solid Font ) वाला इंपैक्ट प्रिंटर है। इसका नाम डेजी व्हील (Daisy wheel) इसलिये दिया गया है कि इसके प्रिंट हैड की आकृति एक फूल (flower) गुलबहार (Daisy) से मिलती है। डेजी व्हील प्रिंटर एक धीमी गति का प्रिंटर होता है लेकिन इसके आउटपुट की स्पष्टता तथा गुणवत्ता उच्च होती है। इसलिए इसका उपयोग कार्यालयीन पत्र (office letter) आदि छापने में होता है और यह लेटर- क्वालिटी प्रिंटर (Letter Quality Printer) कहलाता है। इसके प्रिंट हैड में एक चक्र या व्हील (Wheel) होता है जिसकी प्रत्येक तान (Spoke) में एक कैरेक्टर का ठोस फोन्ट उभरा रहता है। व्हील, कागज की क्षैतिज दिशा में गति करता है और छपने योग्य कैरेक्टर का स्पोक (spoke), व्हील के घूमने से प्रिंट पोजीशन (Position) पर आता है। एक छोटा हैमर (Hammer) स्पोक, रिबन (Ribbon ) और कागज पर टकराता है जिससे अक्षर कागज पर छप जाता है । इस प्रकार के प्रिन्टर अब बहुत कम उपयोग में हैं। डेजी व्हील प्रिंटरों का सर्वाधिक उपयोग 1990 तथा 2000 के दशक में प्रचलित इलेक्ट्रॉनुक टाइपराइटरों में किया जाता था।
- इंकजेट प्रिंटर (Ink – Jet Printers )- इंक-जेट प्रिंटर एक नॉन-इम्पैक्ट प्रिंटर है जिसमें एक नौजल (Nozzle) से कागज पर स्याही की बूंदों की बौछार (Spray) करके कैरेक्टर और आकफढतियाँ छापी जाती हैं। प्रिंट हैड के नोजल में स्याही की बूंदों को आवेशित (Charged) करके कागज पर उचित दिशा में छोड़ा जाता है। इस प्रिंटर का आउटपुट अधिक स्पष्ट होता है क्योंकि प्रत्येक कैरेक्टर दर्जनों डॉट्स से मिलकर बना होता है।
रंगीन इंकजेट प्रिंटर में स्याही के चार नोजल (Magenta ), पीला (Yellow) तथा काला (nozzles ) – नीलम (Cyan), लाल होते हैं। इस कारण इन्हें CMYK प्रिन्टर की संज्ञा भी दी जाती है। यह चारों रंगों का संयोग प्रायः सभी रंगीन प्रिन्टरों में होता है क्योंकि इन रंगो के मिश्रण से किसी भी प्रकार का रंग उत्पन्न कर सकता है।
इस प्रिंटर में एक मुख्य समस्या है- प्रिंट हेड में इंक क्लौगिंग (Ink Clogging) का हो जाना, अर्थात् लम्बे समय तक उपयोग न होने पर या गर्मी होने पर प्रिंट हेड (नोज़ल) के नोजल के मुहाने पर स्याही जमकर छिद्रों को बन्द कर देती है। इंकजेट प्रिंटर के आउटपुट की प्रिंट क्वालिटी प्राय: 300 dpi (dots per inch) होती है।
- डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर – यह प्रिंटर कार्यालयीन कार्यों के लिए सबसे अधिक लोकप्रिय है। इस प्रकार के प्रिंटरों में कैरेक्टर,9×9 या 24×24 पिनों से, जो एक मैट्रिक्स के रूप में होती है, से प्रिंट किये जाते हैं। इसमें कम्प्यूटर की मेमोरी से क्रमबार तरीके से (serially) एक बार में एक कैरेक्टर भेजा जाता है जो प्रिंटर प्रिंट करता जाता है। डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर से किसी भी भाषा में प्रिंट किया जा सकता है। ये 80 कैरेक्टर प्रति सेकण्ड (CPS) से 1500 कैरेक्टर प्रति सेकण्ड तक की गति से प्रिंटिंग कर सकने में सक्षम होते हैं। इनकी प्रिंटिंग लागत अत्यंत कम होने के कारण इनका प्रयोग कार्यालयों में अत्यधिक होता है किन्तु इनकी गुणवत्ता कुछ कम होती है । यह 80 कॉलम 132 कॉलम तथा 136 कॉलम के विभिन्न मॉडल में उपलब्ध होते है। यह 9×9 मैट्रिक्स के प्रिंटर सामान्य डॉट मैट्रिक्स तथा 24×24 मैट्रिक्स के प्रिंटर नियर लेटर क्वालिटी प्रिंटर (NLQ Printer) कहलाते है । कुछ डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर एक ही दिशा में प्रिंट करते है जिन्हें यूनिडायरेक्शनल (Unidirectional) प्रिंटर कहा जाता है किन्तु वर्तमान में प्रचलित अधिकांश डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर दोनों दिशाओं में प्रिंट करते हैं जिन्हे बाईडायरेक्शनल (Bidirectional) प्रिंटर कहा जाता है। सामान्यतः डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर में एक बार में ही एक से अधिक प्रतियां प्रिंट करने के लिए कार्बन युक्त कागज का प्रयोग करने की सुविधा प्रदान की जाती है। ये डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर विश्व की किसी भी भाषा को प्रिंट कर सकते है तथा एन प्रिंटरों का प्रयोग करने पर आप एक ही दस्तावेज में एक ही बार में एक से अधिक भाषा में प्रिंट कर सकते हैं।
- लेसर प्रिंटर – लेज़र प्रिंटर कम्प्यूटर प्रिंटर का एक ऐसा प्रकार है, जो तीव्र गति से किसी सादे कागज़ पर उच्च गुणवत्ता वाले अक्षर और चित्र उत्पन्न (मुद्रित) करता है। प्रिंट किये जा रहे परिणामों की गुणवत्ता में अत्यधिक निखार लाने के लिए लेजर प्रिंटरों का प्रयोग किया जाता है। इनके द्वारा प्राप्त परिणाम की गुणवत्ता अत्यधिक उच्च होती है। लेज़र प्रिंटर का आविष्कार ज़ेरोक्स कंपनी में 1969 में अनुसंधानकर्ता गैरी स्टार्कवेदर द्वारा किया गया। लेज़र प्रिंटर का पहला वाणिज्यिक कार्यान्वयन 1976 में निर्मित IBM मॉडल 3800 था, जिसका प्रयोग चालानों और पत्र – लेबल जैसे दस्तावेजों के अधिक मात्रा में मुद्रण के लिये किया जाता था। किसी कार्यालयीन व्यवस्था में प्रयोग के लिये बनाया गया पहला लेज़र प्रिंटर 1981 में ज़ेरोक्स स्टार 8010 के साथ रिलीज़ हुआ था । पर्सनल कम्प्यूटरों का व्यापक प्रयोग शुरु हो जाने के बाद, सामूहिक बाज़ार को लक्ष्य बनाकर रिलीज़ किया गया पहला लेज़र प्रिंटर 1984 में तैयार HP लेज़र जेट शा जिसकी गति 8 पेज प्रति मिनिट थी।
लेजर प्रिंटर मुद्रण में इलेक्ट्रोस्टैटिक (विद्युत आवेग द्वारा) डिजिटल मुद्रण की प्रक्रिया प्रयोग करता है, जिसमें एक भिन्नरूपेण चार्ज छवि को परिभाषित करने के लिए, नकारात्मक चार्ज हुए बेलनाकार ड्रम पर लेज़र बीम को बार बार आगे-पीछे घुमाकर उच्च गुणवत्ता वाले पाठ और ग्राफिक्स (और मध्यम गुणवत्ता तस्वीरें ) का उत्पादन किया जाता है। इसके बाद बेलनाकार ड्रम चुनिंदा रूप से विद्युत से चार्ज हुए स्याही पाउडर (टोनर) से कागज पर छवि बना देता है। उसे बाद कागज को प्रिंटर में उपलब्ध में हीटर से गुजारा जाता है जिससे पेपर पर बनी छवि को स्थायी कर दिया जाता है।
वर्तमान में रंगीन लेजर प्रिंटर भी बाजार में उपलब्ध है। इन रंगीन लेज़र प्रिंटर में चार रंगों के टोनर (सूखी स्याही) का प्रयोग किया जाता है ये रंग है – हरिनील (Cyan), नीलातिरक्त (Magenta), पीला (Yellow) और काला (Black) जिन्हे संक्षिप्त में CMYK कहा जाता है। एक ओर जहां मोनोक्रोम प्रिंटर केवल एक लेज़र स्कैनर असेम्बली का प्रयोग करते हैं, वहीं रंगीन प्रिंटरों में अक्सर दो या अधिक स्कैनर असेम्बलियां होती हैं।
लेजर प्रिंटर द्वारा छापे गए चित्रों गुणवत्ता उसके द्वारा प्रयुक्त किए गए एक वर्ग इंच में उपयोग किए डॉट्स की अधिकतम संख्या जिन्हे संक्षिप्त में डीपीआई कहा जाता है पर निर्भर करती है। जहां पहले सिर्फ 300 डीपीआई के लेजर प्रिंटर उपलब्ध थे वहीं वर्तमान में 2400 डीपीआई तक के प्रिंटर उपलब्ध है। इनका चयन आपकी आवश्यकता के अनुरूप किया जाता 300 डीपीआई सबसे सरल ग्राफिक्स और पाठ्य के लिए 600 डीपीआई मुद्रण बेहतर पाठ्य और ग्राफिक्स के लिए तथा 1200 डीपीआई पेशेवर फोटोग्राफी के लिए एवं बेहतर तस्वीरों, की प्रिंटिंग के लिए 2400 डीपीआई के प्रिंटर ।
प्रिंटर के अन्य प्रकारों की तुलना में लेज़र प्रिंटर के अनेक महत्वपूर्ण लाभ हैं। इम्पैक्ट प्रिंटरों के विपरीत, लेज़र प्रिंटर की गति में व्यापक अंतर हो सकता है और यह अनेक कारकों पर निर्भर होती है, जिनमें किये जा रहे कार्य की रेखाचित्रीय तीव्रता शामिल है। इन प्रिंटरों से लगभग 15-70 पेज प्रति मिनिट प्रिंट किये जा सकते हैं। साधारण: इनका प्रयोग उन स्थानों पर किया जाता है जहाँ उच्च गुणवत्ता की छपाई तथा तेज प्रिंट गति आवश्यक होती है । सबसे तेज़ गति वाले मॉडल प्रति मिनट एक रंग वाले 200 से अधिक पृष्ठ (12,000 पृष्ठ प्रति घंटा) मुद्रित कर सकते हैं। सबसे तेज़ गति वाले रंगीन लेज़र प्रिंटर प्रति मिनट 100 से अधिक ( 6000 पृष्ठ प्रति घंटा) मुद्रित कर सकते हैं। अत्यधिक उच्च-गति वाले लेज़र प्रिंटरों का प्रयोग निजीकृत दस्तावेजों, जैसे क्रेडिट कार्ड या सुविधा- बिलों, के सामूहिक प्रेषण के लिये किया जाता है और कुछ वाणिज्यिक अनुप्रयोगों में इनकी प्रतिस्पर्धा लिथोग्राफी से है। पिछले कुछ वर्षों में इनकी कीमत अत्यंत कम होने के कारण तथा आकार में छोटे होने के कारण इन प्रिंटर का उपयोग कार्यालयों में काफी बढ़ गया है।
- थर्मल प्रिंटर – थर्मल प्रिंटर ऐसे प्रकार के प्रिंटर है जो एक विशेष प्रकार के कागज जिसे थर्मोक्रोमिक ( thermochromic) या थर्मल पेपर(thermal paper) कहते है पर गर्मी के कारण कागज पर छवि प्रिंट किए जाने की तकनीक प्रयुक्त करते है. जब इस प्रकार के विशेष कागज को प्रिंट हैड से गुजारा जाता है तो कम्प्यूटर द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार उन स्थानों पर गर्म हो जाता है तथा उसके अनुसार कागज पर वह छवि उभर जाती है. सामान्यत यह प्रिंटर एक ही रंग में (काले) में प्रिंट करते है परन्तु नए प्रिंटरों में अलग-अलग तापमानों प गर्म किए जाने की तकनीक के आधार पर दो रंगों में भी प्रिंटिंग की जा सकती है. इस प्रकार के प्रिंटर का अधिक उपयोग बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर्स में किया जाता है.
- ड्रम प्रिंटर ड्रम प्रिंटर में प्रिंट किए जाने वाले कैरेक्टर को एक बेलनाकार ड्रम की सतह पर उभारा जाता हैं। यह बेलनाकार ड्रम प्रिंट किए जाते समय काफी अधिक तीव्र गति से घूमता है। ड्रम और कागज के बीच एक कार्बन रिबिन होती है, जिसकी सहायता से कम्प्यूटर से आदेश प्राप्त होने पर ड्रम से कैरेक्टर प्रिंट होते हैं। आजकल इन प्रिंटर का प्रयोग लगभग समाप्त हो गया है।
ड्रम प्रिंटर थ्री डायमेंशनल प्रिंटर (3 डी प्रिंटर)
3डी प्रिंटर एक नवीन प्रिंटिंग तकनीक के प्रिंटर है जिसमें आब्जेक्ट को कागज पर प्रिंट करने के स्थान पर परत दर परत के रुप में छापा जाता है। ये प्रिंटर जटिल से जटिल ढांचों को आसानी से घर में ही तैयार कर सकता है. इससे छोटी मोटी हर चीज बनाई और दुनिया भर में शेयर की भी जा सकती है।
थ्री डायमेंशनल प्रिटिंग करने से पहले उस आब्जेक्ट का 3 डी में पहले कंप्यूटर में डिज़ाइन तैयार किया जाता है। फिर उचित निर्देश के ज़रिए 3डी प्रिंटर उस डिज़ाइन को, सही पदार्थ (मेटीरियल) का इस्तेमाल करते हुए परत दर परत प्रिंट करता है या बनाता है। इस प्रिंटर में स्याही के स्थान पर पिघले हुए प्लास्टिक या मेटल का इस्तेमाल करते हुए उसे मनचाहा आकार दिया जाता है।
जर्मनी, अमेरिका, हॉलैंड, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में कई शोध संस्थान पहले से 3डी प्रिंटरों का इस्तेमाल कर रहे हैं। जर्मनी में शोध में जुटी कई यूनिवर्सिटियों इन प्रिंटरों की मदद से नए नए मॉडल, पुर्ज और यहां तक कि मानव शरीर में लगाने हेतु (इम्प्लांट के लिए) हार्ट वॉल्व जैसी चीजें बनाती हैं। ऑटो उद्योग से जुड़ी बड़ी कंपनियां नई कारें बनाने से पहले 3डी प्रिंटर की मदद से देखती हैं कि गाड़ी दिखेगी कैसी । अमरीकी ऊर्जा विभाग की प्रयोगशाला ओक रिज नेशनल लेबोरेटरी ने 3डी प्रिंटर पर न केवल स्पोर्ट्स कार बनाई बल्कि 2015 के डेट्रॉयट ऑटो शो में इसे प्रदर्शित भी किया। पहली नज़र में तैयार की गई शेलबी कोबरा कार आम स्पोर्ट्स कार जैसी ही लगती है, चाहे ये प्लास्टिक से बनी है. हालांकि ये स्टील से भी बनाई जा सकती है। शहर का मास्टर प्लान भी पहले 3डी प्रिंटिंग में देखा जा सकता है।
भविष्य में लोग चाहें तो वे तस्वीरों की जगह घर पर प्रियजनों की मूर्तियां लगा सकेंगे। दुनिया भर के रिसर्चर अपने आविष्कारों को साझा कर सकेंगे। नट-बोल्ट, खिलौने, छोटे मोटे पाइप और विज्ञान के जटिल नमूने पांच से 45 मिनट के भीतर घर पर ही बनाए जा सकेंगे। फिलहाल फैक्ट्रियों में कई बार भारी भूलें भी होती हैं। औद्योगिक पैमाने पर लाखों गलत पुर्जे बनने से नुकसान होता है। 3डी प्रिंटर औद्योगिक उत्पादक की इस परंपरा को भी बदलेगा।
वर्तमान में एक सामान्य 3डी प्रिंटर की कीमत 70 हजार रुपये से सवा लाख रुपये की बीच है लेकिन इससे जुड़े सपोर्ट सिस्टम में एक मुश्किल बनी हुई है। 3डी कैमरे और स्कैनर बहुत महंगे हैं। सॉफ्टवेयर इस्तेमाल करना हर किसी के बस की बात नहीं। ऐसे में सिर्फ प्रिंटर लेकर काफी कुछ नहीं किया जा सकता है। हालांकि कंपनियों को उम्मीद है कि अगले दो-तीन साल में प्रिंटर से जुड़ने वाली बाकी मशीनें बेहतर भी हो जाएंगी और काफी सस्ती भी, इस तरह 3डी प्रिंटर का बाजार भी फैलेगा और आम लोगों के लिए सस्ते 3डी कैमरे भी बनने लगेंगे।
कुछ वैज्ञानिक 3 डी प्रिंटर में बायो सामग्री का उपयोग कर मानव शरीर के कुछ अंग जैसे निचला जबड़ा, मांसपेशियाँ, उपास्थि और कान आदि बनाए हैं जो बिलकुल असली अंगों जैसे लगते हैं। इन बायो 3डी प्रिंटर से प्रिंट किये गए ऊतकों का प्रत्यारोपण मानव शरीर के लिए सुरक्षित है, तुरंत ही उसका उपयोग चिकित्सा क्षेत्र में किया जाने लगेगा। अगर ऐसा होता है तो लोगों को शरीर के क्षतिग्रस्त या संक्रमित अंगों की जगह नयी हड्डियां, मांसपेशियां और उपास्थि उपलब्ध हो सकेंगी बल्कि,प्रत्यारोपण हेतु प्रिंट किये जाने वाले कृत्रिम अंगों के माप में प्रत्येक मरीज़ की आवश्यकतानुसार, कंप्यूटर की मदद से, बदलाव करना भी संभव होगा।
प्लॉटर – कुछ कम्प्यूटर अनुप्रयोगों में ग्राफिकल आउटपुट की आवश्यकता होती है जैसे सिविल इंजीनियरिंग में मकान, बांध, पुलो के नक्शे, मैकेनिकल तथा आटोमोबाइल इंजीनियरिंग मे गाड़ियों के पुर्जो के डिजाइन इत्यादि मे। इसके लिए विशेष तौर पर निर्मित ग्राफिकल प्रिंटर बनाये जाते हैं इन्हे प्लॉटर कहा जाता है | इनसे इंजीनियरिंग डिजाइन, नक्शे, ग्राफ चित्र, पाई- चार्ट इत्यादि सरलता से प्रिंट किये जा सकते हैं। इनसे रंगीन परिणाम भी प्राप्त किया जा सकता है।
फिल्म रिकॉर्डर (Film Recorder) – फिल्म रिकॉर्डर एक कैमरे (Camera) के समान डिवाइस है जो कम्प्यूटर से प्राप्त उच्च रेजोलूशन के चित्रों को सीधे 35mm की स्लाइड, फिल्म या ट्रॉन्सपेरेन्सी (Transparencies) पर की स्लाइड, फिल्म का स्थानान्तरित कर देती है। कुछ वर्षों पहले तक यह बड़े कम्प्यूटरों में ही प्रयुक्त की जाती थी लेकिन अब यह माइक्रोकम्प्यूटर्स में भी उपलब्ध है। विभिन्न कम्पनियाँ अपने उत्पादों की जानकारी देने के लिए प्रस्तुतीकरण (Presentation) तैयार करती हैं। इन प्रस्तुतियों को बनाने के लिए फिल्म रिकार्डिंग तकनीक का ही प्रयोग किया जाता है।
वॉयस-आउटपुट डिवाइसेज (Voice Output Devices) कभी कभी टेलीफॉन पर कोई नम्बर डायल करने पर जब लाइन व्यस्त होती है तो एक आवाज सुनाई देती है- “आपने जिस टेलीफोन नंबर को डायल किया है वह किसी अन्य कॉल में व्यस्त है कृपया प्रतीक्षा करें या थोड़ी देर बाद डायल करें” यह संदेश वॉयस आउटपुट डिवाइसेज (Voice Output Devices) की सहायता से हमें टेलीफोन पर सुनाई देता है। पूर्व संग्रहित शब्दों को एक फाइल में से प्राप्त कर कम्प्यूटर इन संदेशों का निर्माण करता है। कम्प्यूटरीकृत वॉयस संदेश का उपयोग हवाई अड्डे या रेलवे स्टेशन पर यात्रियों तक आवश्यक सूचना पहुंचाने के लिए भी किया जाता है। कम्प्यूटर में सैकड़ों शब्दों के उच्चारण कर शब्द – भण्डार संग्रहित किया जाता है जिन्हें कम्प्यूटर प्रोग्राम्स के निर्देशों के आधार पर संयोजित कर संदेश बनाता है और वायस आउटपुट डिवाइस (Voice Output Device) इन संदेशों को स्पीकरों (Speakers) के द्वारा सुना जा सकता है।
साउन्ड कार्ड एवं स्पीकर ( Sound Card and Speaker ) – कम्प्यूटर में साउन्ड कार्ड एक प्रकार की विस्तारण (expansion) सुविधा होती है जिसका प्रयोग कम्प्यूटर पर गाना सुनने, या फिल्में देखने या फिर गेम्स (games) खेलने के लिए किया जाता है। आज के आधुनिक पर्सनल कम्प्यूटर का मुख्य बोर्ड जिसे मदर बोर्ड कहते हैं, में साउन्ड कार्ड पूर्व-निर्मित (in-built ) होता है।
साउन्ड कार्ड तथा स्पीकर कम्प्यूटर में एक दूसरे के पूरक होते हैं । साउन्ड कार्ड की सहायता से ही स्पीकर ध्वनि उत्पन्न करता है, माइक्रोफोन की सहायता से इनपुट किये गये साउन्ड को संग्रहित करता है तथा डिस्क पर उपलब्ध साउन्ड को संपादित करता हैं।
प्राय सभी साउन्ड कार्ड मिडी (MIDI) इन्टरफेस को सपोर्ट करते हैं। मिडी संगीत को इलेक्ट्रॉनिक रूप में व्यक्त करने के लिए एक मानक है। इसके अतिरिक्त, अधिकतर साउन्ड कार्ड साउन्ड ब्लास्टर निर्देशों को समझने योग्य का होते हैं (sound blaster compatible) होते हैं, जो पर्सनल कम्प्यूटर साउन्ड के लिए वास्तविक मानक है । साउन्ड कार्ड दो बुनियादी विधियों फ्रीक्वेन्सी मॉडुलेशन तथा वेबटेबल सिन्थेसिस से डिजिटल डाटा को एनालॉग ध्वनि रूपांतरित करते हैं।