History And Development of Computers


History And Development of Computers – इतिहासकारों के अनुसार विश्व का पहला गणक यंत्र बेबीलोन और टिग्रीस सुफातिस नदियों के किनारे बसी मानव सभ्यताओं के पास 3200 ईसा पूर्व में पाया गया था। यह सरल यंत्र भट्टी में पके मिट्टी के गोल टुकड़ों के बीच छेद कर और उन्हें लकड़ी की सलाइयों में डालकर बनाया जाता था । और इसी से घटाने जोड़ने की विधि ईजाद हुई। चीन और जापान में भी लगभग 2600 ई.पू. में ऐसे ही यंत्र का उपयोग किए जाने के सबूत मिलते हैं चीन में इसे तार के ढांचे में मणि डालकर बनाया जाता था और इसे “ अबाकस ” (Abacus) कहते थे। जापान में इसे “सारोबान” (Saroban) कहा जाता था आज भी यह यंत्र कई खिलौनों की दुकानों में जोड़ने घटाने की विधि समझाने के लिए बच्चों के खिलौनों के रूप में दिखाई दे जाता है। इसके बाद के विकास में भारत के गणितज्ञों का विशेष योगदान रहा है।


पास्कल द्वारा निर्मित पहला यांत्रिकीय कैलकुलेटर


सन् 1671 में, जर्मन तत्ववेत्ता गॉटफ्रोड विल्हेम्स वॉनलीवनिट्ज ने पास्कल के यंत्र के दोषों को दूर करते हुए एक और यंत्र बनाया जिससे जोड़ना – घटाना सरल हुआ। बार-बार जोड़ने – घटाने से गुणा भाग सम्भव था सन् 1801 में एक फ्रांसीसी रेशम बुनकर ने, जिसका नाम जोसेफ मार्क जैकार्ड (Jaccard) था, एक ऐसी आधुनिक कपड़े बुनने की मशीन का आविष्कार किया जिसमें छेद किए गए कागजों (पंच-कार्ड) का उपयोग किया गया था। इससे उन्होंने न केवल अपने कपड़ा उद्योग को आधुनिक बनाया बल्कि यांत्रिकी कम्प्यूटर के सरल आविष्कार के लिए चार्ल्स बैबेज को प्रेरणा प्रदान की।


चार्ल्स बैबेज (Charles Babbage) को गणनाओं में बहुत दिलचस्पी थी। अपने समय की सीमाओं और कारीगरों के असहयोग के बावजूद उन्होंने 1822 में एक कंम्प्यूटिंग मशीन “डिफरेन्स एंजिन” (Difference Engine) का निर्माण किया, जिसके उपयोग में लॉगरिथ्म टेबल की गणना की जा सकती था। इसके सफल उपयोग के पश्चात 1933 में बैबेज ने एक बार फिर नई एवं उन्नत मशीन के निर्माण की योजना बनाई और “एनालिटिकल एंजिन ” ( Analytical Engine) नामक बहुउद्देशीय कम्प्यूटर के निर्माण में जुट गए, 1842 में प्रसिद्ध अंग्रेज कवि लार्ड बायरन की पुत्री लेडी आगस्टा एडा लवलेस ने इस यंत्र की पूरी जानकारी लिखी थी लेडी एडा के इस कार्य का सम्मान करते हुए अमेरिकन पेटेंट विभाग ने जब कम्प्यूटर की एक खास भाषा तैयार की तो उसका नाम ‘एडा’ (Ada) रखा।
बैबेज द्वारा निर्मित यह एनालिटिकल इंजिन ही वह मशीन है जो आगे चलकर कम्प्यूटर की संरचना का आधार बनी। बैबेज ने सैद्धांतिक तौर पर जिस मशीन की परिकल्पना की थी उसे वे प्रायोगिक कठिनाइयों के कारण उस समय पूरी तौर पर निर्मित नहीं कर सके। फिर भी वह मशीन 60 जोड़ प्रति मिनिट करने में सक्षम थी। इसके महत्वपूर्ण हिस्से ही इसके महत्वपूर्ण हस्से ही आज के कम्प्यूटर के विसभन्न प्रभागों (Building Blocks) की आधारशशला हैं। बैबेज की मशीन के विसभन्न प्रभाग इस प्रकार थे
- इनपुट (Input) प्रभाग, जो मशीन के भीतर के भागों तक आदेशों को पहुँचाने का कार्य करता था।
- स्टोर (Store) प्रभाग, जिसमें नंबरों को सुरक्षित रखा जा सके और जहां से उन्हें समय पर उपलब्ध कराया जा सके।
- अरिथमेटिक (Arithmetic) या मिल (Mill) प्रभाग, इस प्रभाग में, स्टोर में उपलब्ध अंकों के आधार पर गणनायें की जाती थीं । ये गणनायें पहियों एवं गियर (Gear) के घूमने की प्रक्रिया से की जाती थीं।
- कंट्रोल (Control) प्रभाग, जो इस बात का निर्धारण करता था कि समस्त गणनायें सही क्रम में और बिना गड़बड़ी के चल सकें। यह नियंत्रण भी पहियों और गियर के एक श्रृंखला के आधार पर किया जाता था।
- आउटपुट (Output) प्रभाग, जो गणना द्वारा प्राप्त परिणामों को दर्शाने का काम करता था।
ये सभी भाग आज के आधुनिक कम्प्यूटरों से पूर्णत: मेल खाते हैं। स्टोर, मिल और कंट्रोल की मिली जुली यूनिट को आज के कम्प्यूटर में केन्द्रीय संगणना प्रभाग (Central Processing Unit या CPU) कहा जाता है। इनपुट और आउटपुट प्रभाग जो क्रमशः सूचना को अंदर ले जाने और गणना के बाद आए परिणाम को दर्शाने का कार्य करते हैं, को आज भी इन्हीं नामों से पुकारा जाता है।
चार्ल्स बैबेज ने अपने जमाने से बहुत आगे का काम कर लिया था । यद्यपि तत्कालीन समाज सरकार से उन्हें कोई सहयोग प्राप्त नहीं हुआ, उन्होंने अपने प्रयत्नों से आधुनिक कम्प्यूटर की बुनियाद रखी इसलिए उन्हे सम्मान से “कम्प्यूटर का तपतामह” (Father of the computers) कहा जाता है।
चार्ल्स बैबेज के काम के आधार पर स्टॉक होम के जार्ज और एडवर्ड शुल्टज ने पहला यांत्रिकीय कम्प्यूटर बनाया जिसके लिए उन्हें पेरिस मेले में स्वर्णपदक प्राप्त हुआ। शुल्ट्ज के इस यंत्र का उपयोग 1869 में मनुष्य की जीवन सम्भावना (Life Expectancy) निकालने में किया गया। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में और 20 वीं शताब्दी के प्रथम 60 वर्षों में कम्प्यूटर संबंधी विकास का कार्य अमेरिका के हिस्से में आता है। गुणा भाग करने की कठिन व उबाऊ प्रक्रिया से तंग आए अमेरिकी क्लर्क विलियम बरोज ने 1886 में एक गुणा भाग करने वाला यंत्र बनाया जो काफी सफल रहा। आगे चलकर उन्होंने “बरोज कार्पोरेशन” की स्थापना की जिसने अपने कारोबार का प्रारंभ उक्त मशीन को बनाने से किया।
सन् 1890 में अमेरिकी जनगणना ब्यूरो ने हरमन होलेरिथ द्वारा बनाये विद्युत यांत्रिकी (Electro Mechanical) संगणक को उपयोग में लाने का निर्णय किया। जिसके उपयोग से दस वर्षों में पूर्ण होने वाला यह कार्य तीन सालों में पूरा हो सका। इस सफलता को देखते हुए होलेरिथ ने स्वयं व्यापार में जाने का निर्णय किया और एक संगणक कम्पनी गठित कर डाली। सन् 1896 की जनगणना में उनका यंत्र व्यापक रूप से उपयोग में लाया गया व उन्हें काफी ठेके मिले। यहां तक कि रूस की पहली जनगणना में भी इसका उपयोग किया गया। इसी बीच 1780 में अमेरिकी वैज्ञानिक बेंजामिन फ्रैंकलिन विद्युत का आविष्कार कर लिया था। माइकल फेराडे ने 1831 में पहल विद्युत जनित्र बनाया। इसके पश्चात विद्युत आधारित उपकरणों (इलेक्ट्रिकल सर्किट्स) पर ज्यादा से ज्यादा खोज की जाने लगी थी।
सन् 1903 में थॉमस एल्वा एडिसन के साथ काम करने वाले यूगोस्लाव वैज्ञानिक निकोला टेसला ने तर्क सिद्धांतों पर आधारित “विद्युत लांजिक सर्किट” बनाए जिस पर उन्हें पेटेंट मिला इन्हें ‘गेट’(gate) या ‘स्विच’ (switch) कहा गया।
सन् 1914 में थॉमसन वाटसन (सीनियर) होलेरिथ कम्पनी में भर्ती हुए। अब इस कंपनी में लगभग 1300 कर्मचारी और उसका नाम था “ कम्प्यूटिंग – टेबुलेटिंग रेकार्डिंग कंपनी” । 1924 में वाटसन इस कम्पनी के अध्यक्ष बने और उन्होंने कम्पनी का नाम “इंटरनेशनल बिजनेस मशीन्स” (IBM) रखा जो आज तक इसी नाम से जानी जाती है और विश्व की कम्प्यूटर बनाने वाली कम्पनियों में अग्रणी है।


सन् 1925 में मेसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी (MIT) बोस्टन में प्रोफेसर बुश और सहयोगी वैज्ञानिकों ने एक बड़ा एनॉलॉग केलकुलेटर बनाया जिसका नाम “ डिफरेंशियल एनालाइजर” (Differnetial Analyzer) था।
अमेरिका में 1928 में रूसी वैज्ञानिक ब्लादीमीर इवोरविन ने केथोड रे ट्यूब (Cathod Ray Tube) का आविष्कार किया। जर्मन वैज्ञानिक कोनराड जूस ने 1936 में जर्मनी में Z1 कम्प्यूटर का निर्माण किया जिसमें पहली बार की- बोर्ड से इनपुट का और उत्तर प्राप्त करने के लिए विद्युत बल्बों का प्रयोग किया गया था। 1938 में ही एक मोटर गैरेज में डेविड पैकार्ड और विलियम हेवलिट ने हेवलिट- पैकार्ड कम्पनी की शुरुआत की जो आगे चलकर कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण व कम्प्यूटर बनाने लगे।
1941 में कोनराड जूस ने Z3 नामक कम्प्यूटर बनाया गया जिसमें विद्युत और यांत्रिक रिले लगाए गये थे। यह कम्प्यूटर एक गुणा करने में तीन से पांच सेकेंड समय लेता था । स्वचालित पद्धति पर काम करने वाला यह दुनिया का प्रथम कम्प्यूटर था।
यह एक दुर्भाग्यपूर्ण परम्परा रही है कि तकनीकी विकास युद्धजन्य आवश्यकताओं और परिस्थितियों से सीधे जुड़ा रहा है। दूसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत के बाद जर्मनी और अमेरिका दोनों ने कम्प्यूटर को युद्ध के उपयोग में आ सकने वाले यंत्र की तरह देखना शुरू किया और उसमें कई संशोधन किए, सन् 1943 में “कोलोसस” (Colosus) नामक इलेक्ट्रॉनिक संगणक के उपयोग से जर्मन गुप्त संकेत कोड समझने में सहायता मिली और इससे युद्ध की परिस्थितियों में बहुत परिवर्तन आया। एक बार कम्प्यूटर की उपयोगिता सिद्ध हो जाने पर उसमें गुणात्मक सुधार का काम बहुत तेजी पकड़ गया।
लगभग इसी समय प्रोफेसर हार्वर्ड आइकिन, ने अमेरिका में ‘हार्वर्ड आई.बी.एम. मार्क 2′(IBM Mark II) नामक कम्प्यूटर तैयार किया जो अपने किस्म का पहला विद्युत यांत्रिकी कम्प्यूटर था और दस आंकड़ों वाली दो संख्याओं का गुणा पाँच सेकंड में पूरा करता था । लेडी एडा ने जिस तरह चार्ल्स बैबेज के साथ काम किया था उसी तरह ग्रेस मरे हॉपर ने प्रोफेसर आयकिन के साथ ‘मार्क 2’ पर प्रोग्राम लिखने का काम किया।
1945 में युद्ध समाप्त होने के पश्चात् भी कम्प्यूटर के विकास की गति बनी रही अमेरिकी वैज्ञानिक जॉन वैन न्यूमैन ने प्रोग्राम मेमोरी में रखने वाले ‘एडवैक’ (ADVAC) कम्प्यूटर का ढांचा बनाया उधर 1946 में जे एकर्ट, जॉन माँचली तथा 50 वैज्ञानिकों के एक दल ने पेनसिलवीनिया के मूर स्कूल में विश्व का पहला डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर ‘एनियाक’ (Electronic Numerical Integrator And computer ENIAC) तैयार किया।
लगभग 15,000 वर्गफुट की जगह लेने वाला यह कम्प्यूटर दो मंजिलों की ऊंचाई वाला और तीस टन वजन का था ‘एनियाक’ एक सेकंड में 357 गुणा कर सकता था और उस पर पांच लाख डॉलर खर्च हुए थे। इस कम्प्यूटर का पहला काम सैनिक मिसाइलों के पथ की गणना करना था। पेटेंट के मामलों उत्पन्न विवादों के कारण एकर्ट तथा माचली, मूर स्कूल छोड़कर चले गए और उन्होंने ENIAC ‘इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर कम्पनी‘ खोल ली जिसका उद्देश्य (Univac) बनाना।

प्रथम इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर इनियॉक (ENIAC)
सन् 1947 में अमेरिका में बेल लेबोरेटीरीज में कार्यरत वैज्ञानिक विलियम शॉकले, जान बार्डीन और वाल्टर ब्रातेन ने एक क्रांतिकारी आविष्कार किया जिसने वॉल्व की छुट्टी कर दी इसे ‘ट्रॉजिस्टर’ (Transistor) का नाम दिया गया। इसी वर्ष ग्रेस हॉपर ने अपने दस्तावेजों में पहले कम्प्यूटर बग शब्द को प्रयुक्त किया। मार्क कम्प्यूटर के डिब्बे में एक तितली (कीड़ा) चले जाने से सर्किट में कुछ आंतरिक खराबी आ गई थी। ग्रेस ने इसे अपनी दैनंदिनी रिपोर्ट में चिपका दिया। उसी दिन से कम्प्यूटर की शब्दावली में debugging नामक शब्द चल पड़ा जिसका मतलब किसी भी कम्प्यूटर में पाए जाने वाले दोषों को निकालना है।
ट्रॉजिस्टर के आविष्कार के बाद तो कम्प्यूटर के विकास की गति में तेजी से वृद्धि हुई । पचास के दशक से आज तक के विकास सभी आयामों को इस अध्याय में समावेशित करना असम्भव है, 1970 के पश्चात तो लगभग हर माह कम्प्यूटर से संबंधित कोई न कोई आविष्कार हुआ है